Deshna : A New Outlook to Jainism
  • Library - Listen (via Youtube) - New
  • Home
  • Prashnavali : Jaintav Kaya Hai
  • Library - Download
  • Thought
  • About US
  • Blog

Express Yourself

12/25/2008

10 Comments

 

Please tell us what you think about this

10 Comments
Vicky
12/25/2008 05:18:26 am

This is a great effort. Hope people can benefit from it.

Reply
Bhaskar Jain link
5/10/2012 12:08:40 am

Great . Shri Uday muni ji maharaj is in Meerut and We are enlightened by the way he has explained the meaning of human life to us. We all the Jains need to spread the message of Lord Mahavir to the world in the present context so as to benefit the humanity as a whole.

Reply
Veena Parakh
3/26/2013 08:29:07 pm

Great effort done by deshna. Com,flowful pravachn by Great guru Uday muni ji mahraj sahib ,such a nice explanation of Jain dharma in scientific way .



Reply
anubhav jain
5/10/2014 08:05:41 pm

please include chaturmas schedule also the present location..

Reply
Nitin
7/29/2014 01:40:58 pm

प्रवचन देने का अधिकारी कोन ?
तत्व-बोध, आत्मबोधदाता स्वयं राग द्वेष का विजेता हो, निष्पक्ष हो। अर्थात ऊच-नीच, धनी-निर्धन, अपने-पराये का भेदभाव न हो। स्वयं ने आत्मस्वरूप का ज्ञान-मान-श्रद्धा-प्रतिर्त और अनुभव किया हो। मोक्ष मार्ग को जाना-माना-चला हो। ज्ञान-दर्शन-चारित्र रूप मोक्ष मार्ग का पथिक ही पथ दर्शक हो सकता है। आगामों के रहस्य, मर्म का शाता-मर्मझ ही और मुनित्व हो। माम वेश या लिंग से मुनि नही होता। आत्मिक गुण, आत्मा की शुद्ध दशा प्रकट हुई हो, अपूर्व आनंद का अनुभव आया हो वही लोक पर अनुकंपा भाव से बिना फला कांप्ता के आनंद पूर्वक धर्म कथा करने का अधिकारी है।
-उदय मुनि

Reply
Nitin
7/29/2014 01:42:08 pm

स्वयं को जानना-देखना ही मोक्षमार्ग है, वही मुक्ति है
हिरण मगरी में चातुर्मास में श्री उदय मुनि ने कहा- ज्ञान, दर्शन, आत्मा का गुण है परन्तु वह किस काम का कि स्वयं को तो जाने नही और परायों को अपना जाने-माने। वह अज्ञान और मिथ्यात्व है। उन्हीं के बल से मिथ्या मोएहादि करके अनन्त कर्मबंद का अनन्त नांम-माण का अनन्त दुवि पाता है। यह चतुर्गति रूप संसार मार्ग है। स्वयं के ज्ञान गुण से स्वयं को जाने, पर को भी जाने, पर या पराया जाने तो वह ज्ञान है।
बुद्धि तो तीदण मिली परन्तु उसका उपयोग आप शरीर, इन्द्रियां, भोग, भोग सदन में ही लगते है वह दुबुद्धि है, कुबुद्धि, उल्टी बुद्धि है, कुमति है। उसी बुद्धि को स्वयं को जानने में लगाओ तो सुमति प्रकट होती है।

Reply
Nitin
7/29/2014 01:42:45 pm

जेन स्थानक हिरन मंगरी सेक्टर 4 में उदय मुनि ने कहा की आत्मा ज्ञ्यान दर्शन गुन्धारक हे शाश्वत हे सवय को जानने देखने का इसका सवभाव हे इसके अतिरिक्त समस्त सुभ असुभ राग द्वेष मोहदी भाव पर-भाव विभव भाव हे कर्म के निमित में आए अनुकूल-प्रतिकूल व्यक्ति स्थती परिएस्थति के कारन होते हे उन्ही विकार भावोसे कर्मो का भयंकर बंध और च्तुर्गती भ्रमण का दुःख होता हे आन्तर भावो में पप्कि अव्धारणकरो की शरीरके साथ जुड़े परिजन उनके लिए जोड़ा धन वैभव भोग्शाधना आदि मे नहीं मेरे नहीं हे सहयोगी हे नजाने किस क्षन आयुष्य्काल पूरा होजाता हें और सभी का वियोग होजाता हें फिर इन क्षन्भनगुर को अपना जान मानकर ममत्व करके क्यो कर्मो का पहाड़ा लगारह हो?

Reply
anubhav jain
9/11/2015 08:26:17 am

Maharaj ji's current location......please notify.....

Reply
kalpvraksha
9/11/2015 11:02:56 pm

Shri Sudhir Jain +91 9424077340

Most Probably Maharaj Shri ji is in Bhilwara Distt.

Reply
Shruti Sharma
11/9/2016 11:05:24 am

Those who have got the opportunity to hear UDAYMUNI JI MAHARAJ are truely lucky & fortunate. This is such a great effort by the one who's managing this site. Highly commendable! Thank you...

Reply



Leave a Reply.

    Archives

    June 2014
    December 2008

    Categories

    All

    RSS Feed

Powered by Create your own unique website with customizable templates.