महावीर कहते हैं, "तिनके और सोने में, शत्रु और मित्र में समभाव रखना ही सामायिक है।' यह ध्यान की बड़ी गहरी परिभाषा हुई। ध्यान की आत्यंतिक परिभाषा हुई। कहते हैं, समता सामायिक है। सम्यकत्व, संतुलन, संयम; दो अतियों के बीच डोलना न, बीच में खड़े हो जाना; न बायें, न दायें; मध्य में थिर हो जाना सामायिक है। प्रेम और घृणा कोई भी पकड़े न, जन्म और मृत्यु कोई भी जकड़े न। न तो हम कहें किसी को कि आओ, न हम कहें किसी को कि जाओ; न तो किसी के लिए स्वागत हो और न किसी के लिए अपमान हो, ऐसी अवस्था को महावीर कहते हैं, सामायिक।
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